वाराणसी
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर भगवान श्रीहरि क्षीरसागर में योग निद्रा में चले जाएंगे। इस वर्ष यह तिथि 20 जुलाई को है। भगवान विष्णु के योग निद्रा में जाने के बाद चार माह तक कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इसे देवशयनी एकादशी भी कहते हैं। चातुर्मास की अवधि में गुड़, तेल, शहद, मूली, परवल, बैंगल, साग-पात ग्रहण करने से बचना चाहिए। किसी और के यहां से भेजी गई दही-भात का भूल कर भी उपयोग नहीं करना चाहिए। इस अवधि में एक स्थान पर रह कर ही आराधना करनी चाहिए।
इसी के साथ संतों-महात्माओं द्वारा चातुर्मास व्रत भी आरंभ हो जाएगा। कार्तिक शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि तक श्रीहरि क्षीरसागर में शेषनाग की शैया पर योगनिद्रा में विश्राम करेंगे। देवोत्थान एकादशी पर पुन: उनका जागरण 15 नवंबर को होगा। इसे हरिप्राबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। उसके बाद मांगलिक कार्य शुरू होंगे। इन चार महीनों में संत-महात्मा किसी एक ही शहर अथवा गांव में निवास करेंगे। भृगुसंहिता विशेषज्ञ पं. वेदमूर्ति शास्त्री के अनुसार एकादशी तिथि 19 जुलाई को रात 10:01 बजे लग चुकी है जो 20 जुलाई को सायं 07:18 बजे तक रहेगी। इस तिथि पर भगवान विष्णु के पूजन एवं व्रत का विशेष विधान है। देवशयनी एकादशी पर घर में तुलसी का पौधा लगाने से यम यातना का भय समाप्त हो जाता है।
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