साहित्य शिल्पी की मासिक सरस काव्य निशा आयोजित

नगर के प्रबुद्ध साहित्यकारो एवं कवियो की संस्था साहित्य शिल्पी की मासिक सरस काव्य निशा अलीपुर चौराहे पर स्थित मां अम्बे के मंदिर में संस्था के अध्यक्ष अमरसिंह घनघोर द्वारा आयोजित की गई जिसमें अंचल के कवियो नें अपनी कविताओ से सावन की झड़ी के समान समां बांध दिया।
सर्वप्रथम मां सरस्वती के समक्ष दीपप्रज्वलन और उन्हें पुष्प अर्पण करके आयोजन का शुभारंभ किया गया तथा मां शारदा के आव्हान स्वरूप अमरसिंह घनघोर द्वारा सस्वर सरस्वती वंदना की गई। पहले कवि के रूप में सशक्त युवा हस्ताक्षर अरविन्द नामदेव द्वारा अपनी रचना पढ़ते हुये कहा गया कि ‘‘मां की दुआ से ही मेरे जीवन का कल है। बहता है तो स्वच्छ है जीवन रूक जाये तो दलदल है।‘‘ अगले क्रम में डॉ. प्रशांत जामलिया नें अपनी रचना के माध्यम से कलम को नापाक करने वाले कलमकारो को ललकारा तथा उन्हें सच्चाई का दर्पण दिखाया। मूलचंद धारवां कजलास नें पहले अपने चिर परिचित अंदाज में पैरोडिया पढ़कर सबको गुदगुदाया तथा शिक्षा का महत्व बताते हुये अपना गीत पढ़ते हुये कहा कि ‘‘भेजो अपने लाल को शाला में तत्काल, कोई बनेगा शास्त्री कोई जवाहरलाल।’’ अपने क्रम को सार्थक करते हुये डॉ. कैलाश शर्मा नें सामाजिक विसंगतियो को निशाना बनाते हुये कहा कि ‘‘घूमते हैं रावण अब अनेक भेषो में। अब तो रोज ही सीताहरण होने लगा।’’  ओज के युवा कवि शैलेष शर्मा साहिल नें आजादी के पहले के भारत का चित्रण अपने गीत के माध्यम से करते हुये कहा गया कि ‘‘न मजहब न मंदिर मस्जिद न चर्च न कोई गुरूद्वारा था। हर भारतवासी को अपना भारत प्राणों से भी प्यारा था।’’ संचालन कर रहे कवि अतुल जैन सुराणा नें रक्षाबंधन के एक गीत के साथ सावन का विरह गीत पढ़ते हुये कहा कि ‘‘राह देख आंखे पथराई बोलो न घर कब आओगे।’’ संस्था के संरक्षक श्रीराम श्रीवादी नें जब अपने कंठ से गौमाता की वर्तमान स्थिति का करूण चित्रण अपनी रचना के माध्यम से करते हुये कहा गया कि ‘‘हिंसक पशु घरो में पलते, गाय गली बाजार है।’’ तो माहौल गंभीर हो गया। अंत में आयोजक अमरसिंह घनघोर नें जब तरन्नुम में गजल पढ़ते हुये कहा गया कि ‘‘होते नहीं फसाद कभी मजहब के नाम से, करते अगर प्रेम हम गीता और कुरान से।’’ तो पूरा माहौल स्वर लहरियो की सुगंध से भर गया। अंत में आभार शैलेष शर्मा साहिल द्वारा व्यक्त किया गया इस अवसर पर अलीपुर क्षेत्रवासियो नें देर रात तक कविताओं का आनंद लिया।

Source : अतुल जैन सुराणा

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Name: धीरज मिश्रा (संपादक)

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